अहेतुसमा
तीनों काल में वृतिता के आश्रित हो जाने से अहेतुसमा जाति होती है अर्थात् साध्य स्वरूप अर्थ के साधन करने में हेतु का तीनों कालों में वर्तना नहीं बनने से प्रत्यवस्थान देने पर अहेतुसमा जाति होती है। जैसे हेतु क्या साध्य से पूर्वकाल में वर्तता है अथवा क्या दोनों साथ-साथ वर्तडे हैं। प्रथम पक्ष के अनुसार साधनपना नहीं बनता क्योंकि साध्य अर्थ के बिना यह किसका साधन करेगा। द्वितीय पक्ष में साध्यपना नहीं बनता क्योंकि साधन के अभाव में वह किसका साध्य कहलायेगा। तृतीय पक्ष में किसी एक विवक्षित में ही साधन या साध्यपना युक्त नहीं होता क्योंकि ऐसी अवस्था में किसको किसका साधन कहें और किसको किसका साध्य ।