असाधारण
व्यभिचारी हेत्वाभास तीन प्रकार का है-साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी। तहाँ जो हेतु सपक्ष व विपक्ष दोनों में रह जाता है वह साधारण है, और जो हेतु सपक्ष और विपक्ष दोनों में नहीं ठहरता वह असाधारण है।
श्लोकवार्तिक/4/ भाषाकार/1/33/न्या./273/425/13,18य: सपक्षे विपक्षे च भवेत् साधारणस्तु स:।… यस्तूभयस्माद्वयावृत्त: स त्वसाधारणो मत:।=व्यभिचारी हेत्वाभास तीन प्रकार का है-साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी। तहाँ जो हेतु सपक्ष व विपक्ष दोनों में रह जाता है वह साधारण है, और जो हेतु सपक्ष और विपक्ष दोनों में नहीं ठहरता वह असाधारण है।
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