अष्टम पृथिवी
सर्वार्थसिद्धि इन्द्रक विमान के ध्वजा दण्ड से बारह योजन ऊपर क्रमशः बीस-बीस हजार योजन मोटे घनोदधिवात, घनवात और तनुवात वलय हैं इसके बाद अर्थात् लोक के मस्तक पर आरूढ़ ईषत् प्राग्भार नामक अष्टम पृथिवी है। इसकी चौड़ाई (पूर्व-पश्चिम) एक राजू, लम्बाई (उत्तर-दक्षिण) सात राजू एवं मोटाई आठ योजन प्रमाण है अष्टम पृथिवी के बहुमध्य भाग में उर्ध्वमुख छत्र के आकार वाला और मनुष्य क्षेत्र प्रमाण अर्थात् पैंतालीस लाख योजन विस्तृत ईषत् प्राग्भार नामक सिद्ध क्षेत्र है। इसकी मोटाई मध्य में आठ योजन है तथा अन्यत्र क्रम से कम होती हुई अन्त में दोनों छोर पर एक-एक अंगुल प्रमाण रह जाती है इस सिद्धक्षेत्र या सिद्धालय के ऊपरी तनुवातवलय में अर्थात् लोक में अन्तिम पाँच सौ पच्चीस धनुष प्रमाण क्षेत्र में अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठियों का निवास है।