अशुद्ध निश्चय नय
सौपाधिक गुण और गुणी में अभेद दर्शाने वाला अशुद्ध निश्चय न -नय है जैसेमतिज्ञान आदि जीव के हैं। जीव के कर्मों के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाले जितने भाव हैं वे जीव के भावप्राण होते हैं ऐसा अशुद्ध निश्चय से जाना जाता है अशुद्ध निश्चय नय से जीव समस्त मोह, राग, द्वेष आदि रूप भाव कर्मों का कर्त्ता है तथा उसके फलस्वरूप उत्पन्न हर्ष विषाद आदि रूप सुख दुख का भोक्ता है। अशुद्ध निश्चय नय से सांसारिक सुख दुख जीव जनित है यह एक दृष्टिकोण है और शुद्ध निश्चय नय से वे कर्म जनित हैं यह एक्र दृष्टिकोण है दोनों ही दृष्टियाँ सत्य हैं ।