अशुचित्व अनुप्रेक्षा
यह शरीर अत्यन्त अपवित्र है, स्नान और अन्य सुगंधित पदार्थों से भी इसकी अशुचिता अर्थात् मलिनता को दूर कर पाना संभव नहीं है किन्तु रत्नत्रय के द्वारा अपनी आत्मा की शुचिता को प्रगट किया जा सकता है, इस प्रकार बार-बार चिन्तन करना अशुचित्व- अनुप्रेक्षा है।