अशरणानुप्रेक्षा
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धन–सम्पदा, भाई-बन्धु, मन्त्र-तंत्र, औषधि आदि कोई भी मरण के समय प्राणी के लिए शरणभूत नहीं होते अर्थात् ये सब उसे मरण से बचा नहीं सकते। इस जन्म-मरण रूपी संसार में भ्रमण करते हुए जीवों का एकमात्र धर्म ही शरण है इस प्रकार बार–बार चिन्तन करना अशरण – अनुपेक्षा है।
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