अविशद
जो प्रतिभास बिना किसी दूसरे ज्ञान की सहायता के स्वतन्त्र हो तथा हरा पीला आदि विशेष वर्ण और सीधा टेड़ा आदि विशेष आकार लिए हो, उसे विशद कहते हैं। इसके विपरीत अविशद है। ज्ञानावरण कर्म के सर्वथा क्षय से अथवा विशेष क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली और शब्द तथा अनुमानादि प्रमाणों से नहीं हो सकने वाली जो अनुभव सिद्ध निर्मलता है वही विशद प्रतिभास है किसी प्रमाणिक पुरुष के ‘अग्नि है’ इस प्रकार के वचन से और ‘यह प्रदेश अग्निवाला है क्योंकि धुआँ है’ इस प्रकार के धूमादि लिंग से उत्पन्न ज्ञान की अपेक्षा यह अग्नि है इस प्रकार के इन्द्रियज्ञान में विशेषता देखी जाती है। वही विशेषता निर्मलता, विशदता तथा स्पष्टता इत्यादि शब्दों द्वारा कही जाती है। इसके विपरीत अविशद है ।