अविचार
अर्थ व्यंजन और योग की संक्रान्ति विचार है। विषय के प्रथम ज्ञान को वितर्क कहते हैं। और उसी का बार-बार चिन्तन विचार कहलाता है। नाना प्रकार के चारित्र पालना चारित्र में विहार करना विचार है इस विचार के अर्ह लिंग आदि चालीस अधिकार हैं उस विचार के साथ जो बढ़ता है वह सब विचार है। अर्ह लिंग आदि रूप विचार के विकल्पों के साथ नहीं बढ़ता वह विचार है। जिसका मरण, काल सहसा उपस्थित हुआ है ऐसे पराक्रम रहित साधु के मरण को अविचार भक्त प्रत्याख्यान कहते हैं। अर्थ व्यंजन और योगों के संक्रम का नाम विचार है अतः इस विचार के अभाव से यह ध्यान एकत्व वितर्क विचार कहा है।