अलोक
जिसमें एक मात्र आकाश द्रव्य पाया जाता है और जो शेष अन्य पाँच द्रव्यों से रहित है, केवल आकाशमय है वह अलोक आकाश कहलाता है। अलोक आकाश में अवकाश देने रूप स्वभाव नहीं पाया जाता है फिर भी शक्ति की दृष्टि से उसमें आकाश का व्यवहार होता है। क्रिया का निमित्तपना होने पर भी रूढ़ि विशेष के बल से भी अलोकाकाश को आकाश संज्ञा प्राप्त हो जाती है, जिस प्रकार बैठी हुई गऊ में चलन क्रिया का अभाव होने पर भी चलन शक्ति के कारण गौ शब्द की प्रवृत्ति देखी जाती है।