अप्रतिघाती
जिन जीवों का पृथ्वी से, जल से, आग से, प्रतिघात नहीं होता उन्हें सूक्ष्म कायिक जानो। जिनका शरीर अन्य पुद्गलों से प्रतिघात रहित हैं, वे सूक्ष्म जीव हैं ये अर्थ यहाँ पर सूक्ष्म अर्थ से लेना । अथवा जिनकी गति का जल, स्थल आधारों के द्वारा प्रतिघात नहीं होता है और अत्यन्त सूक्ष्म परिणमन के कारण वे सूक्ष्म कहे है। कार्मण और तैजस शरीरों का इस प्रकार का प्रतिघात नहीं होता है जिस प्रकार सूक्ष्म होने से अग्नि (लोहे के गोले में) प्रवेश कर जाती है। उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीर का वज्रपटलादिक में भी व्याघात नहीं होता। निश्छिद्र लोहे के मकान से, जिसमें वज्र के किवाड लगे हों और वज्र लेप भी जिसमें किया गया हो मरकर जीव कार्मण शरीर के साथ निकल जाता है, यह कार्मण शरीर मूर्तिमान ज्ञानावर्णादि कर्मों का पिण्ड है। तैजस शरीर भी इसके साथ रहता है। मरण काल में इन दोनों शरीरों के साथ जीव वज्रमय कमरे से निकल जाता है और कमरे में छेद नहीं होता। इसी प्रकार सूक्ष्म निगोद जीवों का शरीर भी अप्रतिघाती है।