अप्रतिक्रमण
अप्रतिक्रमण दो प्रकार का है- अज्ञानी जनों के आश्रित और ज्ञानी जनों के आश्रित । अज्ञानी जनों के आश्रित जो अप्रतिक्रमण है वह विषयों के अनुभव और रागादि रूप है अर्थात् हेय उपादेय के विवेक से रहित सर्वथा अत्याग रूप निरर्गल प्रवृत्ति है। यह प्रतिक्रमण नहीं करने रूप अवस्था है। परन्तु ज्ञानी जनों के आश्रित जो अप्रतिक्रमण है वह शुद्धात्म के सम्यग्श्रद्धान ज्ञान व आचरण लक्षण वाले अनेक रत्नत्रय रूप या त्रिगुप्ति रूप है अतः प्रतिक्रमण के पश्चात् होने वाली आत्मस्थ अवस्था है।