अपादान कारण
जो (द्रव्य) तीनों कालों में अपने रूप को छोड़ता हुआ और नहीं छोड़ता हुआ पूर्व रूप से और अपूर्व रूप वर्त रहा है वह अपादान कारण है, ऐसा जानना चाहिए। जो अपने स्वरूप को छोड़ता है और उसे सर्वथा नहीं छोड़ता। वह अर्थ का उपादान नहीं होता जैसे क्षणिक और शाश्वत । द्रव्य में दो अंश हैं- एक शाश्वत और दूसरा क्षणिक गुण शाश्वत होने के कारण अपने स्वरूप को प्रतिक्षण त्रिकाल नहीं छोड़ती है पर्याय क्षणिक होने के कारण अपने स्वरूप को प्रतिक्षण छोड़ती है यह दोनों ही अंश उस द्रव्य से पृथक् कोई अर्थान्तर रूप नहीं है। इन दोनों से समवेत द्रव्य ही कार्य का उपादान कारण है। “परिणाम क्षणिक उपादान है और गुण शाश्वत उपादान है।”