अपात्र
1. (दानादि की अपेक्षा) सम्यग्दर्शन, शील और व्रत से रहित जीव अपात्र हैं अर्थात् मोक्षमार्ग में दानादि के योग्य नहीं हैं। 2. (विनय की अपेक्षा) दर्शन, ज्ञान चारित्र और तप विनय से सदा काल दूर रहने वाले, गुणवान संयमीजनों के सदा दोष देखने वाले और स्वयं आचरण में शिथिल ऐसे पार्श्वस्थ आदि पाँच प्रकार के श्रमण जिनधर्म बाह्य है अतः विनय के योग्य नहीं है अर्थात् अपात्र है। 3. ( उपदेश की अपेक्षा) मिथ्यामत में स्थित जीव मिथ्यात्व की मन्दता से वीतराग धर्म में द्वेष न करता हो तो वह भद्र है और उपदेश का पात्र है उससे विपरीत अभद्र है तथा उपदेश पाने का अधिकारी नहीं है। गणधर प्रत्येक बुद्ध आदि द्वारा रचित सिद्धांत शास्त्र एवं प्रायश्चित शास्त्र अध्ययन करने के विषय में श्रावक को अधिकार नहीं है। सम्यक्त्व, शील और व्रत से रहित जीव अपात्र है अर्थात् दानादि देने के योग्य नहीं है।