अन्तरकरण
विवक्षित कर्मों की अधस्तन और उपरितन स्थितियों के निषेकों को छोड़कर मध्यवर्ती अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थितियों के निषेकों का परिणाम विशेष के द्वारा अभाव करने को अन्तरकरण कहते हैं। पूर्वोपार्जित कर्म यथासमय उदय में आकर जीव के गुणों का पराभव करने में निमित्त बनते रहते हैं इस प्रकार जीव उसके प्रभाव से कभी भी मुक्त नहीं हो पाता परन्तु आत्म-साधना के द्वारा जीव उसमें थोड़ा अन्तर डाल सकता है। कुछ काल सम्बन्धी कर्म निषेक अपना स्थान छोड़कर आगे पीछे हो जाते हैं उस काल से पूर्व भी उन कर्मों का उदय रहता है और उस काल के बाद भी, परन्तु उतने काल तक कर्म उदय में नहीं रहता। कर्मों के इस प्रकार अन्तर उत्पन्न करने को अन्तरकरण कहते हैं। जैसे- तालाब में पानी के ऊपर जमी हुई काई को दोनों हाथों से आजू-बाजू हटाकर कोई भी शीघ्रता से बीच में से साफ पानी पी लेता है, ऐसी स्थिति अन्तरकरण की है।