अनेकान्त
एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मों की प्रतीति को अनेकान्त कहते हैं। जैसे- एक ही व्यक्ति पिता, पुत्र, भाई आदि अनेक रूपों में दिखाई देता है, इसी तरह प्रत्येक वस्तु अनेक धर्मों से समन्वित है। अनेकान्त भी दो प्रकार का हैसम्यक अनेकान्त और मिथ्या अनेकान्त । आगम के अनुसार तर्क संगत एक ही वस्तु में प्रतिपक्षी अनेक धर्मों के स्वरूप का निरूपण करना सम्यक अनेकान्त है । वस्तु स्वभाव से शून्य केवल वचन विलास रूप परिकल्पित अनेक धर्मात्मक निरूपण को मिथ्या अनेकान्त कहते हैं । सपक्ष तीनों में रहे उसे अनैकान्तिकहेत्वाभास कहते हैं। जो हेतु व्यभिचारी हो सो अनैकान्तिक है। जैसे शब्द अनित्य है क्योंकि वह प्रमेय है यहाँ प्रमेयत्व हेतु अपने साध्य अनितत्व का व्यभिचारी है। कारण आकाश आदि विपक्ष में नित्यत्व के साथ भी रहता है। अतः विपक्ष से व्यावृत्ति न होने से अनैकान्तिकहेत्वाभास है।