अनप्रित
प्रयोजन के अभाव में जिसकी प्रधानता नहीं रहती वह अनप्रित कहलाता है । तात्पर्य यह है कि किसी वस्तु में किसी धर्म के रहते हुए भी उसकी विवक्षा नहीं रहती इसलिए जो गौण (सेकण्डरी) हो जाता है। जैसे- जब किसी व्यक्ति को उसके पिता की अपेक्षा पुत्र कहा जाता है तब उसके अन्य सारे सम्बन्ध गौण हो जाते हैं। जो सम्बन्ध उस समय गौण कर दिए गए हैं वह अनप्रित हैं।