अज्ञान परीषह जय
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‘यह मूर्ख है’ ‘कुछ नहीं जानता, पशु के समान है इत्यादि तिरस्कार के वचनों को मैं सहन करता हूँ, मैने परम दुर्धर तप किया है मेरा चित्त निरन्तर अप्रमत्त रहता है तो मेरे अभी तक भी ज्ञान का अतिशय नहीं उत्पन्न हुआ है इस प्रकार के विचार नहीं करने वाले को अज्ञान परीषह-जय जानना चाहिए ।
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