असद्भाव स्थापना
किसी अपेक्षा से इन्द्रादि का सादृश्य यहाँ विद्यमान है तभी तो मुख्य पदार्थ को जीव की जिस प्रतिमा के अनुसार सादृश्य से स्वयं यह वही है ऐसी बुद्धि हो जाती है मुख्य आकारों से शून्य केवल वस्तु में यह वही है ऐसी स्थापना कर लेना क्योंकि मुख्य पदार्थ को देखने वाले भी जीव की दूसरों के उद्देश्य से कि यह वही है ऐसा समीचीन ज्ञान होता है परोपदेश के बिना नहीं आगे जितने अक्ष वराटक आदि कहे गये हैं, उनके द्वारा असद्भावस्थापना निद्रिष्ट की गई है। असद्भावस्थापना में बिना अन्य के उपदेश के यह वही है ऐसी बुद्धि होनी सम्भव नहीं अक्ष का अर्थ है, जुए के पांस है अथवा शतरंज के पांस है। वराटक ऐसा कहने पर कौड़ियों का ग्रहण करना चाहिए ।