अलाभ परीषह जय
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जो साधु कई दिनों तक आहार प्राप्त न होने पर अलाभ की स्थिति में भी समता पूर्वक ध्यान अध्ययन में लीन रहते हैं और अलाभ की स्थिति को कर्मनिर्जरा का कारण मानकर संतोष धारण करते हैं उनके यह अलाभ – परीषह- जय है।
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