अर्थपर्याय
शुद्धगुण पर्याय की भांति सर्वद्रव्यों की अगुरुलघुगुण की षट् हानि वृद्धि रूप से शुद्ध अर्थ पर्याय होती है। जीवद्रव्य की विभाव अर्थ पर्याय कषाय और विशुद्धि संक्लेशरूप शुभ और अशुभ लेश्या स्थानों में षट् स्थानगत हानि-वृद्धि जाननी चाहिए। द्विअणुक आदि स्कन्धों में रहने वाली तथा चिरकाल स्थायी रूप रसादिरूप पुद्गल द्रव्य की अविभाव अर्थ पर्याय जानना चाहिए।