अप्रतिपाती
देशावधि में आठ भेद हैं, वर्धमान, यमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, और प्रतिपाती । हीयमान और प्रतिपाती को छोड़कर शेष छः भेद परमा– वधि में हैं। अवस्थित, अनुगामी, अननुगामी और अप्रतिपाती ये चार भेद सर्वावधि में हैं। जघन्य आदि तीनों प्रकार परमावधि वर्धमान ही होता है हीयमान नहीं । अप्रतिपाती ही होता है। प्रतिपाती नहीं। अवस्थित होता है अथवा वृद्धि के प्रति अनवस्थित भी होता है परन्तु हानि के प्रति नहीं । इस लोक में देशान्तर गमन का अभाव होने से अनुगामी है। परन्तु परलोक रूप देशान्तर गमन का अभाव होने से अननुगामी है। अब सर्वावधि को कहते हैं— वह वर्धमान होता है हीयमान नहीं। अनवस्थित व प्रतिपाती भी नहीं होता। वर्धमान के संयतभाव के क्षय से पहले तक अवस्थित और अप्रतिपाती है। भवान्तर के प्रति अननुगामी है और देशान्तर के प्रति अनुगामी है। परमावधि ज्ञानियों का प्रतिघात नहीं होने से वहाँ (स्वर्ग में) उनका उत्पाद सम्भव नहीं। इस प्रकार देशावधि तो प्रतिपाती भी है और अप्रतिपाती भी है। परमावधि से सर्वावधि तो अप्रतिपाती ही है।