अनुमान
साधन से साध्य का ज्ञान होना अनुमान है। यह दो प्रकार का है स्वार्थ अनुमान और परार्थ अनुमान । परोपदेश के बिना स्वयं ही साधन से साध्य को जानकर जो ज्ञान उत्पन्न हो जाता है उसे स्वार्थ अनुमान कहते हैं। जैसे- धुएँ को देखकर अग्नि का अनुमान हो जाना। परोपदेशपूर्वक जो साधन से साध्य का ज्ञान होता है उसे परार्थ – अनुमान कहते हैं। जैसे कि इस पर्वत में अग्नि होनी चाहिए क्यों कि यहाँ पर अग्नि न होती तो धुआँ नहीं हो सकता था। इस प्रकार किसी के कहने पर सुनने वाले को उक्त वाक्य के अर्थ का विचार करते हुए और व्याप्ति का स्मरण होने से जो अनुमान होता है वह परार्थानुमान है।