पाँचों इन्द्रियों को मुण्डन अर्थात् उनके विषयों का त्याग, वचन मुण्डन अर्थात् बिना प्रयोजन के कुछ न बोलना, हस्त मुण्डन अर्थात् हाथ से कुचेष्टा न करना, पाद मुण्डन अर्थात् कुचिंतन का त्याग, शरीर मुण्डन अर्थात् शरीर की कुचेष्टा का त्याग …
देववन्दना या सामयिक आदि करते समय मुख व शरीर की जो निश्चल आकृति की जाती है उसे मुद्रा कहते हैं वह चार प्रकार की है- जिनमुद्रा, योगमुद्रा, वन्दनामुद्रा और मुक्ताशुक्तिमुद्रा। दोनों भुजाओं को लटकाकर और दोनों पैरों में चार अंगुल …