मुद्रा
देववन्दना या सामयिक आदि करते समय मुख व शरीर की जो निश्चल आकृति की जाती है उसे मुद्रा कहते हैं वह चार प्रकार की है- जिनमुद्रा, योगमुद्रा, वन्दनामुद्रा और मुक्ताशुक्तिमुद्रा। दोनों भुजाओं को लटकाकर और दोनों पैरों में चार अंगुल का अन्तर रखकर कायोत्सर्ग के द्वारा शरीर से ममत्व छोड़कर खड़े रहने का नाम जिनमुद्रा है पल्यंकासन, पर्यंकासन और वीरासन इन तीनों में से कोई भी आसन लगाकर नाभि से नीचे, ऊपर की ओर हथेली करके, दोनों हाथों को ऊपर नीचे रखने से योगमुद्रा होती है खड़े होकर दोनों कुहनियों को पैर के ऊपर रखने और दोनों हाथों को मुकलित कमल के आकार में बनाने पर वन्दना मुद्रा होती है वन्दना मुद्रा के समान ही खड़े होकर दोनों कुहनियों को पैर के ऊपर रखकर दोनों हाथों की अंगुलियों को आकार विशेष के द्वारा आपस में संलग्न करके मुकलित बनाने से मुक्ताशक्ति मुद्रा होती है।