मनुष्य
मनु की सन्तान मनुष्य कहलाती है अथवा जो मन के द्वारा नित्य ही देय – उपादेय, तत्त्व-अतत्त्व, और धर्म-अधर्म का विचार करते हैं, जो कार्य करने में निपुण है, मन से उत्कृष्ट हैं अर्थात् उत्कृष्ट मन के धारक हैं वे मनुष्य कहलाते हैं। मनुष्यों के चार भेद हैं- कर्मभूमिज और भोगभूमिज तथा अन्तर्द्वीपज व सम्मूचर्न अथवा मनुष्य दो प्रकार के हैं आर्य और म्लेच्छ । (दे० वह वह नाम ) सम्मूर्ध्नि मनुष्य नियम से आर्यखण्ड में ही होते हैं और वे लब्ध्यपर्याप्तक होते हैं। इनकी उत्पत्ति स्त्री के मल, मूत्र, योनि स्थान आदि में होती है। इनकी आयु जघन्य अन्तरमहूर्त होती हैं।