जिसमें पृथिवी के भीतर गमन करने के कारणभूत मंत्र – तंत्र और तपश्चरण का और वास्तुविद्या तथा भूमि संबंधी अनय शुभाशुभ के कारणों का वर्णन किया है उसे स्थलगता-चूलिका कहते हैं।
समस्त वस्त्र आदि परिग्रह का परित्याग करके दिगम्बर होना, पिच्छी कमण्डलु रखना, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रिय विजय आदि अट्ठाईस मूलगुणों को धारण करना, हीन संहनन होने के कारण गाँव, नगर आदि में रहना, जिसमें चारित्र भंग न हो …