दर्शन मोहनीय कर्म के उदय से जीव के जो कलुषित परिणाम होता है वह मोह है अथवा शुद्धात्म श्रद्धान रूप सम्यक्त्व के विनाशक दर्शन मोह को ही मोह कहते हैं। पदार्थ का अयथार्थग्रहण, तिर्यंच व मनुष्यों के प्रति करूणा का …
जो मोहित करता है या जिसके द्वारा मोहा जाता है वह मोहनीय कर्म है अथवा जिस कर्म के उदय से जीव हित-अहित या हेय-उपादेय के ज्ञान से रहित होता है वह मोहनीय कर्म है समस्त दुखों की प्राप्ति का निमित्तकारण …