दाता यदि घी-तेल आदि चिकने पदार्थ से लिप्त हाथ या चम्मच आदि के द्वारा साधु को आहार देता है तो यह मृक्षित-दोष है ।
जो अकेले ही स्वच्छंद रीति से ही विहार करते हैं और जिनेन्द्र देव के वचनों को दूषित करने वाले हैं, उनको मृगचारित्र व स्वच्छंद कहते हैं।
हिंसा, असत्य, चोरी, विषय संरक्षण के लिए सतत् चिंतन करते रहना रौद्र ध्यान मृषानंद है। जो मनुष्य असत्य झूठी कल्पनाओं से पाप रूपी मैल से मलिन चित्त होकर जो कुछ चेष्टा करे, उसे निश्चय करके मृषानंद नाम रौद्र ध्यान कहा …