मूर्च्छा का अर्थ मोह या ममत्व भाव है अथवा हाथी, घोड़ा, माणिक्य, मोती आदि बाह्य चेतन अचेतन परिग्रह तथा रागादिरूप अभ्यन्तर परिग्रह का संरक्षण, अर्जन और संवर्धन आदि रूप व्यापार ही मूर्च्छा है।
जो पदार्थ जीवों के इन्द्रिय – ग्राह्य विषय हैं वे मूर्त हैं अथवा रूपादिमान् होना ही मूर्तत्व है अर्थात् जो पदार्थ रूप, रस, गन्ध व स्पर्श सहित है वे मूर्त या रूपी है छह द्रव्यों में से एक मात्र पुद्गल …