देखिये सम्यक्मिथ्यात्व ।
जिस कर्म के उदय से आप्त, आगम और पदार्थों में अश्रद्धा होती है, वह मिथ्यात्व प्रकृति है। जिस कर्म के उदय से आप्त, आगम और पदार्थों में और उनके प्रतिपक्षियों में अर्थात् कुदेव, कुशास्त्र और कुतत्त्वों में युगपत् श्रद्धान, वह …
महान पातकों के मूल कारण रूप हिंसादिकों से विरक्त होकर अर्थात् अणुव्रती बनकर संतोष और वैराग्य में तत्पर रहकर जो दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्ड – विरतिव्रत, इन अणुव्रतों को धारण करते हैं। जिनके सेवन से महादोष उत्पन्न होते हैं, ऐसे …
केवलज्ञान शुद्ध है और छदमस्थ ज्ञान शुद्ध है। वह शुद्ध केवलज्ञान का कारण कैसे हो सकता है क्योंकि ऐसा वचन है कि शुद्ध को जानने वाला ही शुद्ध आत्मा को प्राप्त करता है, ऐसा नहीं है क्यों कि छदमस्थ ज्ञान …