मिश्रप्रकृति
जिस कर्म के उदय से आप्त, आगम और पदार्थों में अश्रद्धा होती है, वह मिथ्यात्व प्रकृति है। जिस कर्म के उदय से आप्त, आगम और पदार्थों में और उनके प्रतिपक्षियों में अर्थात् कुदेव, कुशास्त्र और कुतत्त्वों में युगपत् श्रद्धान, वह सम्यक मिथ्यात्व या मिश्र प्रकृति है। मिथ्यात्व कर्म के अनुभाग से सम्यक् मिथ्यात्व कर्म का अनुभाव अनंतगुणा हीन होता है। वही मिथ्यात्व प्रक्षालन विशेष के कारण क्षीणाक्षीण मंद शक्ति वाली कोदों के समान अर्धशुद्धि स्वरस वाला होने पर सम्यक् मिथ्यात्व या मिश्र कहा जाता है। इसके उदय में अर्धशुद्ध मदशक्ति वाले कोदों और ओदन के उपयोग से प्राप्त हुए मिश्र परिणाम के समान उभयात्मक परिणाम होता हैं।