देखिये मह ।
वीर भगवान के समवशरण में योग्य पात्र के अभाव में दिव्य ध्वनि निर्गत नहीं हुई तब इन्द्र गौतम नामक ब्राह्मण को ले आये। वह उसी समय दीक्षित हो गया और दिव्य ध्वनि को धारण करने की उसी समय उसमें पात्रता …
साधर्मी जनों के प्रति ऐसा सुदृढ़ अनुराग होना जो विपत्ति या विषम परिस्थिति आने पर भी परस्पर अस्थि व मज्जा के समान न छूटे अर्थात् बना रहे, इसे मज्जानुराग कहते हैं।