मंखली गोशाल
वीर भगवान के समवशरण में योग्य पात्र के अभाव में दिव्य ध्वनि निर्गत नहीं हुई तब इन्द्र गौतम नामक ब्राह्मण को ले आये। वह उसी समय दीक्षित हो गया और दिव्य ध्वनि को धारण करने की उसी समय उसमें पात्रता आ गई। इससे मस्कर–पूरण मुनि सभा को छोड़कर बाहर चला गया। यहाँ मेरे जैसे अनेक श्रुतधारी मुनि हैं उन्हें छोड़कर दिव्य ध्वनि का पात्र यह अज्ञानी गौतम हो गया, यह सोचकर उसे क्रोध आ गया। मिथ्यात्व कर्म के उदय से जीवधारियों को अज्ञान होता है। उसने कहा देहियों को हेयोपादेय का ज्ञान कभी नहीं हो सकता अतएव शास्त्र का निश्चय है कि अज्ञान से मोक्ष होता है। श्वेताम्बर सूत्र ‘उवासकदसांका’ के अनुसार वह श्रावस्ती के अन्तर्गत शखण के समीप उत्पन्न हुआ था। पिता का नाम मंखलि था। एक दिन वर्षा में इसके माता-पिता दोनों एक गोशाला में ठहर गये। उनके पुत्र का नाम उन्होंने गोशाल रखा। अपने स्वामी से झगड़कर वह भागा। स्वामी ने वस्त्र खींचे जिससे वह नग्न हो गया और फिर साधु हो गया। उसके हजारों शिष्य हो गए। बुद्ध कहते हैं कि वह मरकर अवीचि नरक में गया।