सम्यग्दर्शनादि गुणों को निराकुलता से धारण करना अर्थात् परिषहादिक हो जाने पर भी व्याकुल चित्त न होकर सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय रूप परिणति से तत्पर रहना, उससे च्युत न होना। यह निर्वहण शब्द का अर्थ है।
तीर्थंकरों के निर्वाण के अवसर पर होने वाला उत्सव निर्वाण – कल्याणक कहलाता है। आयु पूर्ण होने के अंतिम समय में भगवान योगनिरोध करके ध्यान के द्वारा शेष सर्व कर्मों को क्षय कर देते हैं और आत्मा की परम विशुद्ध …
जिह्वा एवं मन में विकार उत्पन्न करने वाले गोरस आदि को विकृति कहा जाता है। अथवा जिस आहार को परस्पर मिलाने से विशेष स्वाद उत्पन्न होता है उसे विकृति कहते हैं । विकृति से रहित छाछ आदि को निर्विकृति कहते …