रोष
क्रोधी पुरुष के तीव्र परिणाम को रोष कहते हैं। रौद्रध्यान: रूद्र का अर्थ क्रूर है। जो पुरुष प्राणियों को रुलाता है वह रुद्र, क्रूर अथवा सब जीवों में निद्रय कहलाता है ऐसे पुरुष के द्वारा जो ध्यान होता है उसे रौद्रध्यान कहते हैं अथवा हिंसा करने, झूठ बोलने, चोरी करने और परिग्रह की रक्षा करने में रात-दिन लगे रहकर आनन्द मानना रौद्रध्यान है रौद्रध्यान चार प्रकार का है- हिंसानंद, मृषानन्द, चौर्यानन्द और विषय संरक्षणानंद । यह रौद्रध्यान अत्यन्त अशुभ है कृष्ण नील कापोत इन तीन खोटी लेश्याओं के बल से उत्पन्न होता है। रौद्रध्यान मिथ्यात्व गुणस्थान से देशविरत श्रावक के जीवो के तादाम्य से होता है देशविरत श्रावक के होने वाला रौद्रध्यान नरकादि दुर्गतियों में कारण नहीं है क्योंकि सम्यग्दर्शन की ऐसी सामर्थ्य है। जबरदस्ती या प्रमादवश दूसरे के धन को हरण करने के संकल्प का बार-बार चिन्तवन करना चौर्यानन्दी रौद्रध्यान है अथवा चोरी करने के लिए निरन्तर चिन्ता उत्पन्न होना, चोरी करके निरन्तर हर्ष मानना, अन्य कोई चोरी के द्वारा दूसरे के धन का हरण करे तो उसमें भी आनंदित होना यह भी सब चौर्यानन्द नामक रौद्रध्यान हैं जीवों के समूह को स्वयं के द्वारा तथा दूसरे के द्वारा मारे जाने पर अथवा पीड़ित किए जाने पर हर्ष मानना हिंसानन्द नामक रौद्र ध्यान है। जीवों को खंड करने व दग्ध करने आदि को देखकर खुश होना युद्ध में हार जीत सम्बन्धी भावना रखना, वैरी से परलोक मे भी बदला लेने की भावना रखना ये सब हिंसानन्दी रौद्रध्यान है। जिन पर दूसरों को श्रद्धा न हो सके, ऐसी अपनी बुद्धि द्वारा कल्पना की हुई युक्तियों के द्वारा, दूसरों को ठगने के लिए, झूठ बोलने के संकल्प का बार-बार चिन्तन करना मृषानन्द रौद्र ध्यान है। चेतन अचेतन अपने परिग्रह में यह मेरा परिग्रह है, मैं इसका स्वामी हूँ, इस प्रकार ममत्व रखकर उसके अपहरण करने वाले का नाश कर उसकी रक्षा करने के संकल्प का बार- बार चिन्तन करना विषय संरक्षणानन्द नाम का चौथा रौद्रध्यान है।