रुद्र
सब रुद्र दश पूर्व का अध्ययन करके विषयों के निमित्त तप से भ्रष्ट होकर सम्यक्त्व रूपी रत्न से रहित होते हुए घोर नरक में डूब जाते हैं। रुद्रों के जीवन में असंयम का भार अधिक होता है, इसलिए नरकगामी होना पड़ता है। भीमावलि, जितशत्रु, रुद्र, वैश्वानर, सुप्रतिष्ठ, अचल, पुण्डरीक, अजितंधर, अजितनाभि, पीठ, सात्यकिपुत्र ये ग्यारह रुद्र अंगधर होते हुए तीर्थ कर्त्ताओं के समयों में हुए हैं।