योगस्थान
स्थान प्ररूपणा के अनुसार श्रेणि के असंख्यातवें भाग मात्र जो असंख्यात स्पर्द्धक हैं उनका एक जघन्य योगस्थान होता है योगस्थान तीन प्रकार का है- उपपाद योगस्थान, एकान्तानुवृद्धि योगस्थान और परिणाम योगस्थान | एक-एक भेद के 14 जीव समास की अपेक्षा चौदह – चौदह भेद हैं तथा ये चौदह भी सामान्य जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा तीन प्रकार के हैं । पर्यायधारण करने के पहले समय में स्थित जीव के उपपाद योगस्थान होते हैं जो वक्रगति से नवीन पर्याय को प्राप्त हो उसके जघन्य, जो ऋजुगति से नवीन पर्याय को धारण करे उसके उत्कृष्ट योगस्थान होते हैं। एकान्तानुवृद्धि योगस्थान उपपाद आदि दोनों स्थानों के बीच में जघन्य अपने काल के प्रथम समय में व उत्कृष्ट अन्त के समय में होता है अर्थात् उत्पन्न होने के दूसरे समय से लेकर एक समय कम शरीर पर्याप्ति के अन्तर्मुहूर्त के अन्त समय तक होता है। पर्याप्त होने के प्रथम समय से लेकर आगे सब जगह परिणाम योग है अर्थात् आयु के अन्त तक होता है निर्वृत्यपर्याप्तकों के परिणाम योगस्थान ही होता । लब्ध्यपर्याप्तक जीव के अपनी आयु के अन्त के त्रिभाग के प्रथम समय से लेकर अन्त समय तक स्थित के सब भेदों से उत्कृष्ट व जघन्य दोनों प्रकार के योगस्थान होते हैं । जिन योगस्थानों में वृद्धि, हानि तथा अवस्थान (जैसे के तैसे बने रहना) होता है उनको घोटमान योगस्थान परिणाम योगस्थान कहा गया है।