मैत्री
दूसरों को दुख न हो ऐसी भावना रखना मैत्री है अथवा अनन्तकाल से मेरा आत्मा इस संसार में भ्रमण कर रही है इस संसार में सभी प्राणियों ने मेरे ऊपर अनेक बार महान् उपकार किए हैं ऐसा मन में विचार करना मैत्री भावना है अथवा त्रस या स्थावर किसी भी जीव की मेरे द्वारा विराधना न हो ऐसी महानता को प्राप्त हुई समीचीन बुद्धि मैत्री भावना कही जाती है इसमें ऐसी भावना रहती है कि ये सब जीव कष्ट व आपदाओं से दूर रहे सदा वैर, पाप, अपमान को छोडकर सुख को प्राप्त होवें ।