मृषामन
सद्भाव अर्थात् समीचीन पदार्थ के विषय करने वाले मन को सत्य मन कहते हैं, और उसके द्वारा जो योग होता है उसे सत्य मनोयोग कहते हैं। इससे विपरीत योग को मृषामन कहते हैं। जहाँ जिस प्रकार की वस्तु विद्यमान हो वहाँ उसी प्रकार से प्रवृत्ति करने वाले मन को सत्य मन कहते हैं। उससे विपरीत मन को मृषा मन कहते हैं। सत्यार्थ ज्ञान को उत्पन्न करने की शक्तिरूप भाव मन । ऐसे सत्य मन से जनित योग या प्रयत्न विशेष सत्य मनोयोग है। इसके विपरीत असत्यार्थी विषयक ज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति रूप भाव मन से जनित प्रयत्न विशेष असत्य मनोयोग है।