मान कषाय
1. दूसरे के प्रति नमने अर्थात् विनयभाव रखने की न होना मान है अथवा क्रोधवश व विद्या तप जाति आदि के मद से दूसरे के तिरस्कार रूप भाव को मान कहते हैं इस तरह मान का अर्थ अहंकार या गर्व है। मान कषाय पाषाण, हड्डी, लकड़ी और लता के भेद से चार प्रकार का है अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन की अपेक्षा मान कषाय चार प्रकार की है। 2. मान का एक अर्थ तौल या माप भी है हीनता अधिकता को प्राप्त प्रस्थ आदि माप कहलाते हैं।