माध्यस्थ्य
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रागद्वेष पूर्वक पक्षपात का न करना माध्यस्थ्य है जो अविनेय है अर्थात् जिनमें जीवादि पदार्थों को सुनने व ग्रहण करने का गुण नहीं है उनके प्रति माध्यस्थ्य रखना चाहिए ।
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