महाव्रत
हिंसादि पाँच पापों का मन-वचन-काय और कृत – कारित अनुमोदना से त्याग करना महापुरुषों का महाव्रत है। अहिंसा, अचौर्य, सत्यादि महाव्रतों में यद्यपि जीवघात की असत्य बोलने की और असत्य ग्रहण की निवृत्ति है, परन्तु जीव रक्षा की सत्य बोलने और दत्त ग्रहण की प्रवृत्ति, इस एकदेश प्रवृत्ति की अपेक्षा यह एकदेश व्रत है। त्रिगुप्ति लक्षण निर्विकल्प समाधि काल में इन एक देशव्रतों का भी त्याग हो जाता है। महाव्रत युक्त सम्यग्दर्शन, मोक्ष का कारण है।