महावीर स्वामी
अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर । ये वैशाली के राजा सिद्धार्थ की रानी प्रियकारिणी (त्रिशला) के पुत्र थे। इनकी आयु बहत्तर वर्ष की थी और शरीर सात हाथ ऊँचा था। निरंतर बढ़ने वाले गुणों के कारण ये वर्धमान कहलाते थे। संगम देव ने जब इन पर उपसर्ग किया तब इनकी निर्भयता देखकर इन्हें महावीर कहा । तीव्र तपश्चरण करने से ये लोक में अतिवीर कहलाये। संजय-विजय नाम के ऋद्धिधारी मुनियों को इनके दर्शन से समाधान मिला इसलिए इन्हें सन्मति नाम दिया गया । शरीर का अनन्त बल देखकर इन्हें ‘वीर’ कहा गया । तीस वर्ष की अवस्था में इन्होंने जिनदीक्षा ग्रहण की। बारह वर्ष की तपस्या के उपरांत इन्हें केवलज्ञान हुआ। गणधर के अभाव में छयासठ दिन तक इनकी दिव्यध्वनि नहीं हुई। इन्द्रभूति गौतम के आने पर और शिष्यत्व स्वीकार करने पर दिव्यध्वनि प्रारंभ हुई। इनके संघ में इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह गणधर, चौदह हजार मुनि, छत्तीस हजार आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक व तीन लाख श्राविकाएँ थीं। इन्होने पावापुर से मोक्ष प्राप्त किया।