मनुष्य गति
जिस नाम कर्म के उदय से जीव मनुष्य पर्याय को या मनुष्यपने का प्राप्त होता है वह मनुष्यगति नाम कर्म है। मनुष्यगति में ही तप होता है, मनुष्य गति में ही समस्त महाव्रत होते हैं, मनुष्यगति में ही ध्यान होता है और मनुष्यगति में ही मोक्ष की प्राप्ति होती है, अतः मनुष्यगति सर्वश्रेष्ठ है। मनुष्यगति में मिथ्यात्व रूप प्रथम गुणस्थान से लेकर अयोगकेवली पर्यन्त चौदह गुणस्थान पाए जाते हैं। मनुष्य मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि और असंयत गुणस्थानों में पर्याप्तक भी होते हैं और अपर्याप्तक भी । मनुष्य सम्यग्मिथ्यादृष्टि, संयतासंयम और संयत गुणस्थानों में नियम से पर्याप्तक होते हैं (उपरोक्त कथन मनुष्य सामान्य की अपेक्षा है ) ।