मध्यलोक
समूचा लोक तीन भागों में विभक्त है। इसके मध्य भाग को मध्यलोक कहते हैं यह मेरु के तलभाग से उसकी चोटी पर्यन्त एक लाख योजन ऊँचा तथा एक राजु प्रमाण लम्बा चौड़ा है इसमें अनगिनत द्वीप व समुद्र परस्पर एक दूसरे को चारों ओर से घेरे हुए स्थित है सभी समुद्र चित्रा पृथिवी खण्डित कर वज्रा पृथिवी के ऊपर तथा सब द्वीप चित्रा पृथिवी के ऊपर स्थित है मध्यलोक के बीचों-बीच एक लाख योजन व्यास वाला प्रथम जम्बूद्वीप स्थित है जम्बूद्वीप को घेरे हुए दूने विस्तार वाला लवण समुद्र है फिर घातकी खण्ड, कालोदधि समुद्र, पुष्करवर द्वीप आदि अनगिनत द्वीप व समुद्र हैं अन्तिम द्वीप व समुद्र का नाम स्वम्भूरमण है। इस मध्यलोक के मध्यवर्ती जम्बूद्वीप से लेकर मानुषोत्तर पर्वत तक अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र से युक्त पैंतालीस लाख योजन प्रमाण क्षेत्र को मनुष्यलोक कहते हैं। इस अढाई द्वीप में और अन्तिम द्वीप सागर में ही कर्मभूमि है अन्य सर्वद्वीप व सागर में सर्वदा भोगभूमि की व्यवस्था रहती है मनुष्य लोक और अन्तिम स्वयंभूरमण द्वीप व सागर को छोड़कर शेष सभी, द्वीप सागरों में विकलेन्द्रिय व जलचर नहीं होते हैं।