मद्य
नवनीत मद्य-मांस और मधु ये चार महाविकृत हैं। मद्य मन को मोहित करता है। मोहचित्त होकर धर्म को मूल जाता हैं। और धर्म का भूला हुआ, वह जीव निशंक बने हिंसा रूप आचरण करने लगता है। रस द्वारा उत्पन्न हुए अनेक एक इन्द्रिय जीवों की यह मदिरा योनिभूत है। जिसके पीने से मद्य में पैदा होने वाले समस्त जीव समूह की मृत्यु हो जाती है, और पाप या निंदा के साथ साथ, काम क्रोध, भय और भ्रम आदि प्रधान दोष उदय को प्राप्त होते हैं। इसके पीने से पहले तो बुद्धि भ्रष्ट होती है। फिर ज्ञान मिथ्या हो जाता है। अतः माता बहिन को भी स्त्री समझने लगता है। उससे रागादि उत्पन्न होते है। उनसे अन्याय रूप क्रियाएँ तथा उनसे अत्यन्त क्लेश रूप जन्म मरण होता है। भाँग नागफेन, धतूरा, चरस, गाजा आदि जो जो पदार्थ नशा उत्पन्न कराने वाले हैं, वे सब मद्य के समान ही कहे जाते हैं।