बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय है। आदान शब्द का अर्थ ग्रहण है। बिना दी हुई वस्तु का लेना अदत्तादान कहलाएगा और यह अदत्तादान ही स्तेय या चोरी कहलाता है। जहाँ जिन वस्तुओं का लेना और देना सम्भव है …
जबरदस्ती अथवा प्रमाद की प्रतीक्षा पूर्वक दूसरे के धन को हरण करने के संकल्प का बार-बार चिन्तन करना तीसरा रौद्रध्यान है। जीवों के चौर्य कर्म के लिए निरन्तर चिन्ता उत्पन्न हो और चोरी कर्म करके भी निरन्तर हर्ष माने आनन्दित …
इसके निमित्त से स्वप्न अवस्था में विशेष शक्ति प्रगट होती है और जीव सोता हुआ भी कार्य करता है उसे स्त्यानगृद्धि कहते हैं ।
जिन्हों के काम अतिवृद्धि को प्राप्त हुआ हो ऐसी कामी जनों द्वारा की जाने वाली और सुनी जाने वाली ऐसी जो स्त्रियों की संयोग वियोगजनित विविध वचन, रचना वही स्त्रीकथा है।