स्तेयानंदी रौद्र ध्यान
जबरदस्ती अथवा प्रमाद की प्रतीक्षा पूर्वक दूसरे के धन को हरण करने के संकल्प का बार-बार चिन्तन करना तीसरा रौद्रध्यान है। जीवों के चौर्य कर्म के लिए निरन्तर चिन्ता उत्पन्न हो और चोरी कर्म करके भी निरन्तर हर्ष माने आनन्दित हो, अन्य कोई चोरी के द्वारा परधन को हरे, उसमें हर्ष माने, उसे निपुण पुरुष चौर्य कर्म से उत्पन्न हुआ रौद्रध्यान कहते हैं । यह ध्यान अतिशय निन्दा का कारण है। अमुक स्थान में बहुत धन है, मैं तुरन्त हरण करके लाने में समर्थ हूँ, दूसरे के द्वीपादि सबको मेरे आधीन समझो क्योंकि मैं जब चाहूँ उनको हरण करके जा सकता हूँ । इत्यादि रूप चिन्तन स्तेयानन्दी रौद्रध्यान है ।