समस्त योगज अथवा अयोगज प्रत्यक्ष उल्लेख करने वाले ही अवभासित होते हैं क्योंकि बाह्य या आध्यात्मिक अर्थों में उत्पन्न होने वाले प्रत्येक शब्द से अनुविद्ध ही उत्पन्न होता है। शब्द के संस्पर्श के अभाव में ज्ञानों की प्रकाशमानता दुर्घट है, …
जो पुरुष किसी उद्योग में जुटे हैं, उन्हें उद्देश्य कर खांसना आदि शब्दानुपात है, यह देशव्रत का एक अतिचार है।
कठोर भूमि पर शयन करते समय उत्पन्न बाधाओं से विचलित नहीं होना और बाधा को समतापूर्वक सहन करना शय्या परीषह जय कहलाता है। जो स्वाध्याय ध्यान और मार्गश्रम के कारण थककर कठोर, विषम और प्रचुर मात्रा में कंकर और खप्परों …
एकान्त और जन्तुओं की पीड़ा से रहित स्थानों में शय्या और आसन लगाना शय्यासन शुद्धि है शय्या और आसन की शुद्धि में तत्पर संयत को स्त्री, छुद्र जन्तु चोर, मद्यपान, जुआ, शराबी आदि स्थानों में नहीं ठहरना चाहिए तथा श्रृंगार, …