शब्दाद्वैतवादी वाणी चार प्रकार की मानते हैं— पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी और सूक्ष्मा । पश्यन्तीजिसमें विभाग नहीं हैं, सब तरह से संकोचा है क्रम जिसमें, ऐसी पश्यन्ती कहिये । लब्धि के अनुसार द्रव्य वचन को कारण जो उपयोग। (जैन धर्म के …
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु, इन्द्र के समान ज्ञानवान् और वाद-विवाद करने में निपुण वादी को भी युक्तियुक्त समाधान के द्वारा निरूत्तर करने में समर्थ है उसे वादित्व – ऋद्धि कहते हैं।